हनुमान धारा एक अदभुत पर्यटन स्थल क्यों हैं जानें

 हनुमान धारा : 

यहां पर पंचमुखी हनुमान की प्रतिमा है। यह लगभग 100 मीटर ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। जब श्रीराम लंका विजय से वापस लौट रहे थे, तब उन्होंने हनुमान के विश्राम के लिए इस स्थल का निर्माण किया था। यहीं पर पहाड़ी की चोटी पर `सीता रसोई' स्थित है।

हनुमान धारा की कहानी – 

उत्तर प्रदेश में चित्रकूट जिला उत्तर प्रदेश के सबसे पवित्र स्थानों में से एक है। आप नियमित अंतराल पर मंदिरों और अत्यधिक धार्मिक महत्व के अन्य स्थानों पर आते हैं। ऐसी ही एक जगह है हनुमान धारा। रामघाट से लगभग 3 किमी दूर स्थित (इस स्थान के मुख्य शहर का केंद्र माना जाता है), यह बड़ी संख्या में भक्तों को आकर्षित करता है।



हनुमान धारा की कथा

हनुमान धारा पर्वतमाला के मध्यभाग में स्थित एक झरना है। पहाड़ के सहारे हनुमानजी की एक विशाल मूर्ति के ठीक सिर पर दो जल के कुंड हैं, जो हमेशा जल से भरे रहते हैं और उनमें से निरंतर पानी बहता रहता है। पहाड़ी के शिखर पर स्थित हनुमान धारा में हनुमान की एक विशाल मूर्ति है। मूर्ति के सामने तालाब में झरने से पानी गिरता है। इस धारा का जल हनुमानजी को स्पर्श करता हुआ बहता है।


भगवान हनुमान की मूर्ति के ऊपर से बहने वाली एक कोमल धारा के कारण इस स्थान को हनुमान धारा कहा जाता है। भक्तों के लिए, यह शायद सबसे खूबसूरत नजारा है। बजरंग बली (भगवान हनुमान का दूसरा नाम) की मूर्ति लाल पत्थर के संगमरमर से बनाई गई है| यहां 12 महीनें भक्तों का आना जाना लगता रहता है। 

 हनुमान धारा की चोटी से जहां भी देखेंगे आपको दूर-दूर तक हरियाली दिखाई देगी और उनके बीच में कुछ बस्तियां भी दिखाई देंगी| इस जगह का नाम कैसे पड़ा, इसके पीछे एक आकर्षक पौराणिक कथा है। ऐसा माना जाता है किश्रीराम के अयोध्या में राज्याभिषेक होने के बाद एक दिन हनुमानजी ने भगवान श्रीरामचंद्र से कहा ‘हे प्रभु, लंका को जलाने के बाद तीव्र अग्नि से उत्पन्न गरमी मुझे बहुत कष्ट दे रही है। मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मैं इससे मुक्ति पा सकूं। इस कारण मैं कोई अन्य कार्य करने में बाधा महसूस कर रहा हूं। कृपया मेरा संकट दूर करें।’ तब प्रभु श्रीराम ने मुस्कराते हुए कहा, ‘चिंता मत करो। भगवान श्रीराम ने हनुमानजी को यह स्थान बताया। आप चित्रकूट पर्वत पर जाइये। वहां आपके शरीर पर अमृत तुल्य शीतल जलधारा के लगातार गिरने से आपको इस कष्ट से मुक्ति मिल जाएगी।’

हनुमान जी ने चित्रकूट आकर विंध्य पर्वत श्रंखला की एक पहाड़ी में श्री राम रक्षा स्त्रोत का पाठ 1008 बार किया। जैसे ही उनका अनुष्ठान पूरा हुआ ऊपर से एक जल की धारा प्रकट हो गयी। जलधारा शरीर में पड़ते ही हनुमान जी के शरीर को शीतलता प्राप्त हुई। आज भी यहां वह जल धारा के निरंतर गिरती है। जिस कारण इस स्थान को हनुमान धारा के रूप में जाना जाता है। धारा का जल पहाड़ में ही विलीन हो जाता है। उसे लोग प्रभाती नदी या पातालगंगा कहते हैं।


जल को अपने साथ ले जाते हैं भक्त :

विभिन्न असाध्य रोगों के निवारण के लिए भी भक्त इस जल को अपने साथ ले जाते हैं। पहाड़ पर अनेकों गुफाएं व् कन्दराएं इस बात को प्रमाणित करती हैं की इन जगहों पर बड़े बड़े तपस्सीयों ने आत्मजागरण की तपस्या की है। स्थान के पुजारी बताते हैं की यहां का जल अमृत के समान माना जाता है और कभी नहीं सूखता। कहा जाता है की आज भी हनुमान धारा के पहाड़ पर कई साधु संत जनकल्याण के लिए तपस्यारत हैं और उन्हें हनुमान की कृपा प्राप्त है।

सीढ़ियों की एक उड़ान के माध्यम से मंदिर तक पहुँचा जा सकता है। रास्ते में, आपको भगवान राम, देवी सीता और भगवान लक्ष्मण की कई मूर्तियाँ मिलती हैं। एक बार जब आप शीर्ष पर पहुंच जाते हैं, तो आपको आसपास के मनोरम दृश्यों के साथ व्यवहार किया जाता है। मंदिर के अंदर एक छोटी सी संरचना भी है जिसका नाम सीता रसोई है। यह भी यहां के पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण है।


हनुमान धारा की उंचाई में स्थित है सीता रसोई

चित्रकूट में ही जमीन से लगभग सौ फुट की उंचाई पर भगवान हनुमान का भव्य मंदिर मौजूद है। जिसे हनुमान धारा भी कहते हैं। हनुमान प्रतिमा के ठीक पीछे से साफ पानी की एक धारा लगातार बहती है जिस कारण से इसका नाम हनुमान धारा पड़ा है। वैज्ञानिक भी आज तक इस बात का पता नहीं लगा पाए हैं की आखिर ये पानी कहां से आता है। इसी मंदिर के ठीक पीछे माता सीता की रसोई मौजूद है। इस रसोई में मिट्टी के चूल्हे के साथ रसोई से जुड़ी कुछ पुरानी चीजें भी रखी हुई हैं। जिन्हें श्रद्धालु पूजते हैं। इस जगह पर वो स्थान भी है जहां मां सीता पंच ऋषियों को अपने हाथ से बना भोजन खिलाया करती थी

 

चित्रकूट - वाल्मीकि रामायण, महाभारत पुराण स्मृति उपनिषद व साहित्यक पोराणिक साक्ष्यों में खासकर कालिदास कृत मेघदुतम में चित्रकुट का विशद विवरण प्राप्त होता है। त्रेतायुग का यह तीर्थ अपने गर्भ में संजोय स्वर्णिम प्राकृतिक दृश्यावलियों के कारण ही चित्रकूट के नाम से प्रसिध्द है जो लगभग 11 वर्ष तक श्रीराम माता सिता व भ्राता लक्ष्मण की आश्रय स्थली बनी रही। यही मंदाकिनी पयस्विनी और सावित्री के संगम पर श्रीराम ने पितृ तर्पण किया था। श्रीराम व भ्राता भरत के मिलन का साक्षी यह स्थल श्रीराम के वनवास के दिनों का साक्षात गवाह है, जहां के असंख्य प्राच्यस्मारकों के दर्शन के रामायण युग की परिस्थितियों का ज्ञान हो जाता है।


ब्रह्मा, विष्णु और महेश चित्रकुट तीर्थ में ही इहलोकोका गमन हुआ था यहां के सती अनुसूया के आश्रम को इस कथा के प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। चित्रकूट का विकास राजा हर्षवर्धन के जमाने में हुआ। मुगल काल में खासकर स्वामी तुलसीदासजी के समय में यहां की प्रतिष्ठा प्रभा पुनः मुखारिन हो उठी।


भारत के तीर्थों में चित्रकुट को इसलिए भी गौरव प्राप्त है कि इसी तीर्थ में भक्तराज हनुमान की सहायता से भक्त शिरोमणि तुलसीदास को प्रभु श्रीराम के दर्शन हुए। यहां हनुमान जी ने अग्नि शांत की


एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने