समाज कार्य के उद्देश्य क्या हैं

  


समाज कार्य के उद्देश्य

यद्यपि समाज कार्य के उद्देश्य समय के परिवर्तन के साथ-साथ परिवर्तित होते रहते हैं, तथापि इसका प्रमुख उद्देश्यमानवतावादी दर्शन, वैज्ञानिक ज्ञान तथा प्राविधिक निपुणताओं का प्रयोग करते हुए व्यक्तियों, समूहों तथा समुदायोंको अपनी समस्याओं का समाधान करने योग्य बनाना है। हेलेन (Helen) ने समाज कार्य के दो उद्देश्य बताएहैं — प्रथम, व्यक्तियों की अन्तर्निहित शक्तियों एवं पर्यावरण से सम्बन्धित साधनों के प्रयोग में समाज कार्य द्वाराइस प्रकार सहायता प्रदान करना कि व्यक्ति को सन्तोष प्राप्त हो और वह अपने को समाज के अनुकूल बना ले,तथा द्वितीय, पर्यावरण के सुधार में इस प्रकार सहायता देना कि सामाजिक और व्यक्तिगत समस्याओं की कमसे-कम उत्पत्ति हो । संयुक्त राष्ट्र संघ की विज्ञप्ति में यह स्पष्ट उल्लेख है कि यह साधारणतया स्वीकार कर लियाजाता है कि समाज कार्य का सम्बन्ध सामाजिक सम्बन्धों से है जो व्यक्ति, समुदाय और वातावरण से जुड़े होतेहैं। विशेष रूपइन सम्बन्धों के फलस्वरूप उत्पन्न बाह्य और आन्तरिक कठिनाइयों से समाज कार्य का सम्बन्ध अवश्य है। इन कठिनाइयों से व्यक्ति अपने कर्त्तव्यों का भली-भाँति पालन नहीं कर सकते हैं। समाज कार्य और इसकी प्रणाली के उद्देश्य में लगभग एकरूपता है। विकास मार्ग के व्यवधानों की परिसमाप्ति, आन्तरिक शक्तियों की मुक्ति और उनका प्रयोग अर्थात् शक्तियों का विकास करना जिनसे व्यक्ति समूह या समुदाय अपना कार्य स्वयं करने में सक्षम हो जाते हैं। इस प्रकार प्रत्येक प्राणी और सम्पूर्ण समाज कार्य का उद्देश्य और अन्तिम लक्ष्य एक ही है। ब्राउन (Brown) के मतानुसार समाज कार्य का प्रथम कार्य जैसा कि इसने सदैव किया है, आश्रित व्यक्तियों या कठिनाई में पड़े हुए व्यक्तियों को कुछ भौतिक सहायता प्रदान करना है। दूसरे समाज कार्य ऐसे व्यक्तियों की सहायता करता है जो अपने को समाज के आर्थिक और सामाजिक वातावरण के अनुकूल बनाने में समस्याओं का अनुभव करते हैं। इसका सम्बन्ध व्यक्तियों की मनोवैज्ञानिक समस्याओं से है। इन समस्याओं के परिणाम का कारण निर्धनता, बीमारी या अपराध हो सकता है, अथवा यह भी सम्भव है कि ये समस्याएँ स्वतन्त्र रूप से उत्पन्न हुई हों। समाज कार्य उन सुविधाओं की उपलब्धि में भी सहायता प्रदान करता है जिनका कम आय के व्यक्ति उपयोग नहीं कर सकते; जैसे— मनोरंजन और सांस्कृतिक कार्यक्रम, जो अच्छे जीवन स्तर का एक अभिन्न अंग है। समाज कार्य सम्पूर्ण समाज के जीवन स्तर को उन्नत करने का भी प्रयास करता है। समाज कार्य ने अच्छे भवनों तथा आवास की सुविधाओं एवं उन्नत स्वास्थ्य, शिक्षा और अवकाश को भी अपने कार्य के क्षेत्र में सम्मिलित कर लिया है। समूह और व्यक्ति के लिए कल्याण की भावना यदि नेतृत्व को नहीं तो कठिन सहयोग को अवश्य जन्म देती है। इस सम्बन्ध में सम्भव है सामाजिक सुधार में प्रयत्न किया जाए। यह सुधार अपराधियों के उपचार के तरीकों में काम करने के तरीकों और वेतन में, महिलाओं तथा बच्चों के लिए रक्षात्मक कानूनों में, अल्पसंख्यकों को सामाजिक और राजनीतिक अधिकार दिलाने में और जन सहायता के कामों में हो सकता है।

ब्राउन ने समाज कार्य के निम्नलिखित चार उद्देश्य बताए हैं1. भौतिक सहायता प्रदान करना,

2. समायोजन स्थापित करने में सहायता देना,

3. मानसिक समस्याओं का समाधान करना, तथा

4. कमजोर वर्ग के लोगों को अच्छे जीवन स्तर की सुविधाएँ उपलब्ध कराना।

हैमिल्टन (Hamilton) के मतानुसार समाज कार्य के दो प्रमुख उद्देश्य हैं— प्रथम, आर्थिक एवं शारीरिक कल्याण अर्थात् स्वास्थ्य एवं अच्छा जीवन स्तर तथा द्वितीय, सन्तोषजनक सम्बन्धों एवं अनुभवों द्वारा सामाजिक वृद्धि के अवसर प्रदान करना। इसमें वृद्धि में आने वाली बाधाओं को दूर करने तथा सेवार्थी की क्षमताओं का पूर्ण विकास करने का प्रयास किया जाता है। इससे सेवार्थी को अपनी विकृत योग्यता के पुनः स्थापित करने में सहायता मिलती है।

समाज कार्य के प्रमुख उद्देश्यों को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है—

1 मानवीय आवश्यकताओं, विशेष रूप से वंचितों की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायता प्रदान करना । वस्तुतः समाज कार्य का सबसे प्रमुख उद्देश्य वंचितों की सहायता करना है ताकि वे जीवन का न्यूनतम स्तर प्राप्त कर सकें।

2 समुदाय में विद्यमान मनो–सामाजिक समस्याओं के कारणों का पता लगाकर उनका समाधान करना।

3 व्यक्तियों के सामाजिक सम्बन्धों को सौहार्दपूर्ण एवं मधुर बनाने में सहायता प्रदान करना ।

4 व्यक्तिों में प्रजातान्त्रिक मूल्यों (समता, भ्रातृत्व एवं स्वतन्त्रता) का विकास करना तथा नागरिक अधिकारों की प्राप्ति में सहायता देना।

5 सामाजिक उन्नति एवं विकास के विभिन्न अवसर उपलब्ध कराना।

6 व्यक्तियों में सामाजिक समस्याओं एवं सामाजिक कुरीतियों के प्रति चेतना जाग्रत करना ।

7 पर्यावरण को स्वच्छ एवं विकास के अनुकूल बनाकर उसमें सन्तुलन बनाए रखने में सहायता प्रदान करना।

8 सामाजिक विकास हेतु सामाजिक व्यवस्था में अपेक्षित परिवर्तन लाने हेतु अनुकूल परिस्थितियाँ विकसित करना।

9 समाज में पाई जाने वाली समस्याओं के विरुद्ध स्वस्थ जनमत तैयार करना । व्यक्तियों की समस्याओं का समाधान करने, उनका सामना करने एवं विकासात्मक क्षमताओं में वृद्धि करना।

10 व्यवस्थाओं का प्रभावशाली एवं मानवोचित प्रचालन करना ताकि लोगों को संसाधन एवं सेवाएँ उपलब्ध हो सकें। लोगों को उन व्यवस्थाओं से जोड़ना जो उन्हें संसाधन, सेवाएँ एवं अवसर उपलब्ध कराती हैं।

सामाजिक परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं के अनुसार विधानों/अधिनियमों का निर्माण कराना 

● वर्तमान विधानों / अधिनियमों में वांछित संशोधन हेतु सुझाव देना।

व्यक्तियों में सामंजस्य की क्षमता विकसित करने में सहायता प्रदान करना ।

व्यक्तियों की सामाजिक क्रियाओं को प्रभावपूर्ण बनाने में सहायता प्रदान करना ।

व्यक्तियों में यथोचित निर्देशन द्वारा आत्म सहायता करने की क्षमता विकसित करना ।

व्यक्तियों को उनके जीवन में सुख एवं शान्ति का अनुभव कराने हेतु प्रयास करना ।

समाज में शान्ति एवं व्यवस्था को बनाए रखने हेतु प्रोत्साहित करना।

2 समाज कार्य के मूल्य एवं सिद्धान्त

फ्रीडलैंडर (Friedlander) के मतानुसार समाज कार्य के मौलिक मूल्यों एवं सिद्धान्तों का जन्म स्वतः नहीं हुआ है, अपितु इनकी जड़ें उन गहरे एवं उपजाऊ विश्वासों में मिलती हैं जो सभ्यताओं को सीखते हैं। अमेरिका की प्रजातान्त्रिक व्यवस्था का आधार नैतिक एवं आध्यात्मिक समानता, वैयक्तिक विकास की स्वतन्त्रता, सुअवसरों के स्वतन्त्र चुनाव की स्वतन्त्रता, न्यायपूर्ण प्रतिस्पर्द्धा, वैयक्तिक स्वतन्त्रता, पारस्परिक प्रतिष्ठा एवं सर्वजन के अधिकार हैं। प्रजातन्त्र के यह सभी आदर्श अभी तक पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं किए जा सके हैं तथा समाज कार्य इन्हीं आदर्शों की प्राप्ति का प्रयास कर रहा है।

मूल्यों एवं क्रियाओं में प्रत्यक्ष सम्बन्ध पाया जाता है। जब कभी हम किसी क्रिया को करते हैं तो उसका मूल्यांकन उसके साथ जुड़े मूल्यों द्वारा किया जाता है। समाज कार्य का लक्ष्य मानव कल्याण करना है। यह तभी सम्भव है जब समाज कार्य में सामाजिक मूल्यों को समाहित किया जाए। मूल्यों के आधार पर व्यक्ति की जीवन-शैली का निर्धारण होता है तथा अन्तः क्रियाएँ सम्भव होती हैं। मूल्य समाज द्वारा मान्यता प्राप्त इच्छाएँ एवं लक्ष्य हैं जिनका आन्तरीकरण समाजीकरण की प्रक्रिया के माध्यम से होता है। कोनोप्का (Konopka) ने समाज कार्य के दो प्राथमिक मूल्यों का उल्लेख किया है— प्रथम, प्रत्येक व्यक्ति का आदर तथा प्रत्येक व्यक्ति को अपन क्षमताओं के पूर्ण विकास का अधिकार तथा द्वितीय, व्यक्तियों की पारस्परिक निर्भरता तथा एक-दूसरे के प्रति अपनी योग्यता के अनुसार उत्तरदायित्व । समाज कार्य के मूल्यों एवं सिद्धान्तों में समानता, सामाजिक न्याय तथा भ्रातृत्व प्रमुख हैं। ये तीनों मूल्य प्रजातन्त्र का आधार माने जाते हैं।

संयुक्त राष्ट्र संघ का 1958 में 'समाज सेवा के प्रशिक्षण' पर तृतीय अन्तर्राष्ट्रीय सर्वेक्षण हुआ जिसमें समाज कार्य के निम्नलिखित नैतिक नियमों पर बल दिया गया -

1. किसी व्यक्ति की सामाजिक पृष्ठभूमि (स्थिति, जाति, धर्म, राजनीतिक विचारधारा) तथा व्यवहार को ध्यान में रखे बिना उसे मानव के रूप में स्वीकार करना तथा ऐसे सभी कार्य करना जिनसे उसके गौरव, शील और आत्म-सम्मान में वृद्धि हो ।

2. व्यक्ति, समूह और समुदाय की भिन्नताओं को आदर की दृष्टि से देखते हुए ऐसे कार्य करना जिनसे समन्वय की वृद्धि और सामुदायिक कल्याण सम्भव हो ।

3. आत्म-सम्मान एवं उत्तरदायित्व को उचित प्रकार से वहन करने की योग्यता बढ़ाने की दृष्टि से स्वावलम्बन को प्रोत्साहित करना ।

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