बाल विकास का अर्थ परिभाषा, उपयोगिता एवं महत्व

बाल विकास का अर्थ परिभाषा, उपयोगिता एवं महत्व

बाल विकास का अर्थ

आज के युग में ज्ञान-विज्ञान के विकसित होने के कारण मानव विकास को लिपिबद्ध कर लिया जाता है। मानव विकास के इतिहास में ज्ञान-विज्ञान की अनेक नई शाखाओं का विकास हुआ है। व्यक्ति के गर्भ में आने से लेकर मृत्यु तक के विकास के अनेक नवीन पहलुओं को मनोविज्ञान प्रस्तुत करता है।

गर्भाधान से लेकर जन्म तक व्यक्ति में अनेक प्रकार के परिवर्तन होते हैं जिन्हें भ्रूणावस्था का शारीरिक विकास माना जाता है। जन्म के बाद यह कुछ विशिष्ट परिवर्तनों की ओर संकेत करता है, जैसे-गति, भाषा, संवेग और सामाजिकता के लक्षण उसमें प्रकट होने लगते हैं। विकास का यह कम वातावरण से प्रभावित होता है। प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह आवश्यक है।

कि वह सफलता प्राप्त करने के लिए बालक के विकास की विभिन्न अवस्थाओं का ज्ञान प्राप्त करे इन अवस्थाओं के कारण

बालक में होने वाले परिवर्तनों के अनुसार वह अपनी कार्य प्रणाली को विकसित कर सकता है।

विकास का अर्थ केवल बड़े होने या कद भार बढ़ने से नहीं है, विकास में परिपक्वता की ओर बढ़ने का निश्चित कम होता है। यह एक प्रगतिशील श्रृंखला होती है। प्रगति का अर्थ भी दिशा बोध युक्त होता है। यह दिशा बोध आगे भी होता पीछे भी।

विकास का अर्थ परिवर्तन है परिवर्तन एक प्रक्रिया है, जो हर समय चलती रहती है। इसमें केवल शरीर के अंगों का विकास ही नहीं होता वरन् सामाजिक, सांवेगिक अवस्थाओं में होने वाले परिवर्तनों को भी सम्मलित किया जाता है। यह परिवर्तन दो प्रकार के होते हैं। मात्रत्मक परिवर्तन और गुणात्मकपरिवर्तन

परिभाषा:

विभिन्न मनोविज्ञानिकों ने विकास की परिभाषा अपने मतानुसार भिन्न-भिन्न दी है।

मुनेरो के अनुसार परिवर्तन श्रृंखला की वह अवस्था, जिसमें बच्चा भ्रूण अवस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक गुजरता है, विकास कहलाता है"

गैलन के अनुसार विकास सामान्य प्रयत्न से अधिक महत्व की चीज है विकास का अवलोकन किया जा सकता है एवं किसी सीमा तक इसका मूल्यांकन एवं मापन भी किया जा सकता है। इसका मापन तथा मूल्यांकन तीन रूपों में किया जा सकता है (अ) शरीर निर्माण (ब) शरीर शास्त्रीय (स) व्यवहारिक व्यवहार चिन्ह विकास के स्तर एवं शक्तियों के विस्तृत रचना करते हैं"।

हरलॉक के अनुसार विकास बड़े होने तक ही सीमित नहीं है वस्तुतः यह तो व्यवस्थित एवं समानुपात प्रगतिशील कम है तो परिवक्वता की प्राप्ति में सहायक होता है"।

जेम्स ड्रेवर के अनुसार विकास वह दशा है तो प्रगतिशील परिवर्तन के रूप में प्राणी में सतत रूप से व्यक्त होती है। यह प्रगतिशील परिवर्तन किसी भी प्राणी में भ्रूण अवस्था से लेकर प्रौढ अवस्था तक होता है। यह विकास तंत्र को सामान्य रूप से नियंत्रित करता है यह प्रगति का मापदण्ड है और इसका आरम्भ शून्य से होता है"।

विकास के अध्ययन की उपयोगिता :

(1)बाल पोषण का ज्ञान :

बाल विकास के अध्ययन ने समाज के समक्ष दो पहलू प्रस्तुत किये हैं पहला व्यवहारिक दूसरा सैद्धांतिक समाज में प्रत्येक शिक्षक व अभिभावक के लिए दोनों पक्षों का ज्ञान होना अति आवश्यक है। बाल विकास का कमिक ज्ञान भावी, माता-पिता तथा उसके संरक्षकों को होगा तो वह उसकी उचित देखभाल कर सकेंगे मातृत्व, पितृत्व दायित्व जैसे आधारभूत प्रश्नों का उत्तर बाल विकास के गंभीर अध्ययन से ही प्राप्त होता है।

(2) बालक का सामान्य व्यवहार :

बाल विकास का प्रमुख लक्ष्य है, कि बालक का विकास इस तरह हो कि उसमें सामान्य व्यवहार ही दिखाई दें। बालक का मानसिक तथा शारीरिक विकास सामान्य हो। बाल विकास का यह अध्ययन अभिभावकों को इस बात के लिए प्रेरित करता है कि उनके बालकों का व्यवहार एवं विकास सामान्य होगा तभी वे समाज के लिए उपयोगी हो सकते हैं।

(3) बालकों का विश्वास

प्रायः देखा जाता है कि बालक माता-पिता से झूठ बोलते हैं ऐसी स्थिति में बालक अपने माता-पिता का विश्वास खो बैठता है। बाल विकास का अध्ययन माता-पिता को सामाजिक निर्देशन देता है और उन परिस्थितियों तथा उपायों की ओर ध्यान दिलाता है, जिसके फलस्वरूप माता-पिता तथा बालक के बीच सद्भाव विकसित होता है।

(4) विकास की अवस्थाओं का ज्ञान

बाल विकास के अध्ययन से माता-पिता को यह ज्ञात होता है कि विभिन्न अवस्थाओं में बालकों में कौन-कौन से शारीरिक, संवेगात्मक, सामाजिक, नैतिक तथा भाषा सम्बंधित परिवर्तन होते हैं और किस प्रकार बालक शैशव से प्रौढ़ अवस्था तक विकसित होता है।

(5)सामाजीकरण का ज्ञान

बालक का सामाजीकरण उसके जीवन की महत्वपूर्ण घटना है अन्य व्यक्तियों के साथ उसका व्यवहार तथा समायोजन जैसे गतिविधियों को समझने के लिए बाल विकास का अध्ययन आवश्यक है। तभी वह समाज के लिए उपयोगी बनता है।

(6) बालक का व्यक्तित्व :

बाल विकास के अध्ययन से बालक के व्यक्तित्व का विकास सरलता से किया जा सकता है। बालक में अनेक क्षमताएं एवं शक्तियां पाई जाती हैं तभी उचित दिशा में विकसित होती है। जब बालक के विकास की विभिन्न अवस्थाओं का ज्ञान अभिभावक को होता है।

(7) खेल और बालक :अभिभावक को बाल विकास का अध्ययन यह बताता है कि खेलों को बालक के विकास की प्रक्रिया में किस प्रकार रखा जाए कि उसका संतुलित विकास हो

(8) स्वास्थ्य

बालक का शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य उसके विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण है जिन बालकों का शारीरिक स्वास्थ्य खराब होता है वह मानसिक रूप से भी अस्वस्थ्य पाए जाते हैं इसकी जानकारी भी बाल विकास के अध्ययन से ही मिलती है।

(9) शैक्षिक प्रक्रिया :

माता-पिता भी बालक के शैक्षिक विकास के लिए उतने ही जिम्मेदार है जितना कि शिक्षक बालक की शिक्षा की प्रक्रिया में रूचि, अभिरूचि, योग्यता, क्षमता आदि का विशेष महत्व है। इसीलिए पाठ्यक्रम बालक की आयु बुद्धि तथा परिवेश के अनुसार बनने लगे हैं।

(10) वैयक्तिक भेदों पर बल

एक माता-पिता के दो बालकों में समानता नहीं पाई जाती है अतः बालकों को व्यक्तिगत शिक्षण की आवश्यकता होती है। बाल विकास के अध्ययन से विभिन्न प्रकार के शिक्षण पद्धतियों को आवश्यकतानुसार अपनाया जा सकता है।

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