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चित्रकूट/रामनगर/छीबों

गुंता नदी के तट पर जुटे सनातन संस्कृति के संवाहक

वैदिक संस्कृति के अध्येताओं द्वारा वैदिक रीति से मनायी गई श्रावणी

वर्षों से चली आ रही छीबों में श्रावणी मनाने की परम्परा

हरी नारायण पाण्डेय

श्रावण मास के महापर्व एवं रक्षाबंधन के सुअवसर पर गुंता नदी के तट पर आज श्रावणी संस्कार तथा उपनयन पूजन एवं सप्तर्षि पूजन विद्वान आचार्यों के निर्देशन में सम्पन्न किया गया इस दौरान गाँव के लोग मौजूद रहे

आज गुंता नदी के तट पर वैदिक परंपरा के साथ श्रावणी संस्कार सम्पन्न हुआ इस दौरान आचार्य के रूप में पण्डित श्री कान्त मिश्र गंगापारी रहे एवं संचालन बृज नन्दन प्रसाद बलुआ ने किया इस दौरान गाँव के लगभग 20 लोग मौजूद रहे

 छीबों गाँव में श्रावणी की शुरुआत की परम्परा कब से शुरू हुई इसकी सटीक जानकारी तो किसी को भी नहीं है लेकिन गाँव के बुजुर्ग बताते हैं कि सँस्कृत के ख्याति प्राप्त प्रकाण्ड विद्वान रहे स्व0 इन्द्र नारायण गुरूजी ने गांव में संस्कृत महा विद्यालय की नींव डाली और उनके निर्देशन में संकट मोचन सँस्कृत महा विद्यालय छीबों के छात्रों एवं शिक्षकों द्वारा तथा अन्य क्षेत्रीय वैदिक विद्वानों के उपस्थिति में छीबों में लगभग 1962 के पहले से ही इसका अभ्युदय हुआ जो आज भी अनवरत रूप से जारी है लेकिन जिस विद्यालय के शिक्षक एवं छात्रों के द्वारा इस परम्परा का निर्वहन होता रहा है इधर कुछ वर्षों से वह वैदिक साहित्य की प्रयोगशाला संकट मोचन सँस्कृत महा विद्यालय छीबों अब इस कार्यक्रम में न तो रुचि ले रहे हैं और न ही कार्यक्रम में शामिल होते हैं जो हैरानी का विषय है

 आज के कार्यक्रम की बात करें तो गुंता नदी के तट पर सर्वप्रथम कार्यक्रम में मौजूद सभी लोगों को पंचगव्य प्राशन कराया गया

इसके बाद देव ऋषि पितर तर्पण स्नान व पूजन के कार्यक्रम शुरू हुए

इस दौरान छीबों के अशोक पाण्डेय एडवोकेट शंकर चरण पाण्डेय व्यास नारायण पाण्डेय रामसुमिर मिश्रा रविशंकर शुक्ला नांनबाबू त्रिपाठी भागवत गौतम भैयालाल त्रिपाठी कमलेश त्रिपाठी हरी नारायण पाण्डेय आशुतोष शुक्ला रजनेश ओझा उपस्थित रहे।

 श्रावणी संस्कार कार्यक्रम व महोत्सव की बात करें तो इसकी नींव गुरूजी स्व0 इन्द्र नारायण जी ने 1962 में डाली थी अपने विद्यार्थियों को वैदिक संस्कृति की ओर आकर्षित करने के लिए शिक्षा एवं वैदिक संस्कृति के महापर्व श्रावणी से जोड़ा था और कालान्तर में इनके गोलोकवासी होने के बाद सरकारी सेवा में आने वाले विद्यालय के आचार्य अपने छात्रों सहित स्वयं श्रावणी निर्वहन के कार्यक्रम में लग गए समय के साथ इस महाविद्यालय के तमाम जिम्मेदारों ने इस उत्तरदायित्व का निर्वहन किया है 

वर्तमान में सँस्कृत विद्यालय के जिम्मेदारों द्वारा इस परम्परा में रुचि नहीं रखने से यह उत्तरदायित्व गाँव के श्री कान्त गंगापारी एवं बृज नन्दन प्रसाद बलुआ महाराज संभाले हुए हैं इन दोनों महानुभावों के नेतृत्व में श्रावणी परम्परागत रूप से गांव में सम्पन्न हो रही है लेकिन छीबों एवं पियरियामाफी गाँव के लोग इस परम्परा की ओर ज्यादा रूचि रखते हुए दिख नहीं रहे हैं

ऐसे में इस परंपरा के अस्तित्व में अब खतरा जरूर मंडरा रहा है देखना होगा कि धर्म एवं संस्कृति की तरफ लोग कब उन्मुख होंगे

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