सामाजिक विकास क्या है व सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक कौन-कौन से हैं?

 

सामाजिक विकास - बालक जन्म के समय समाज निरपेक्ष होताहैं उम्र बढ़ने के साथ-साथ बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया हो जाती है जिसके फलस्वरूप उसमें सामाजिक गुणों का विकास होता है जो सामाजिक विकास को प्रदर्शित करता है।

(1) आरम्भिक सामाजिक अनुक्रियायें शैशवावस्था में बालक का सामाजिक सम्पर्क माता तथा उसके इर्द-गिर्द का वातावरण होता है। माता के चेहरे को देखकर वह मुस्कराता है और वही उसका सामाजिक संपर्क है। बाल्यावस्था में उसका सामाजिक सम्पर्क बढ़ता रहता है और उसी तरह अनुक्रियाएं भी करता है। वह अपने पराये में अंतर करने लगता है और यही अन्तर करना उसके सामाजिक विकास का पहला चरण है।

(2) अन्य बालकों के साथ अनुक्रिया सामाजिक विकास एकाकी तथा अनुक्रिया नहीं है। बालक अन्य बालकों के प्रति अनुक्रिया करता है। इससे उसके सुखद एवं दुखद अनुभव में वृद्धि होती है। नौ मास की आयु तक के अनुक्रिया के प्रति प्रतिक्रिया नहीं करते दो वर्ष की आयु के बच्चे लेन-देन की अनुक्रियायें करने लगते हैं।

सामाजिक प्रतिबोध सामाजिक विकास प्रतिबोध का होना ही सामाजिक विकास की महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। इसी प्रक्रिया में बालक स्वाभाविक तथा अर्जित सामाजिक व्यवहारों को सीखता है तथा परिस्थिति उत्पन्न होने पर उसके अनुकूल आचरण करता है ये मुखांगों द्वारा निच्छापूर्व अपनी अनुक्रिया व्यक्त करने लग आदि भाव विकसित होने लगते हैं।

प्रतिरोधी व्यवहार सामाजिक व्यवहार के विकास के साथ-साथ बालकों में प्रतिरोधी अथवा नकारात्मक व्यवहार उत्पन्न होने लगता है। नकारात्मक व्यवहार में होठों को बंद करना, सिर हिलाना, अंगों में सख्ती ले आना आदि है।

लड़ाई झगड़ा जैसे-जैसे बच्चे बड़े होने लगते हैं, उनके व्यवहार में लड़ाई-झगड़ों की संख्या बढ़ने लगती है। इनके कारण जब भी बच्चे के कार्य की गति में अवरोध उत्पन्न किया, बालक लड़ने के लिये तैयार हो जाता है। यदि बड़े सामाजिक मान्यता प्राप्त विषयों से बच्चों को प्रशिक्षण देंगे तो उनमें झगड़े होने की संभावना कम होगी।

उनमें इन्दिता, करना सहानुभूति – सामाजिक विकास में सहानुभूति की विशेष भूमिका होती है। बालक में यह प्रवृत्ति सहानुभूति की परिस्थितियों में ही विकसित होती है सहानुभूति पूर्ण व्यवहार में भी आयु तथा परिपक्वता के साथ-साथ भिन्नता पाई जाती है।

प्रतिस्पर्धा बालक में प्रतिस्पर्धा का विकास सामाजिक विकास के कारण होता है। अपने आगे बढ़ने में व्यक्ति सदा ही लगा रहता है। उसे अपने प्रतिद्वन्दियों से स्पर्धा करनी पड़ती है।

सहयोग सहयोग सामाजिक विकास तथा समायोजन का मूल है सहयोग की भावना के विकास से ही व्यक्ति में मित्र-शत्रु भाव उत्पन्न होता है। दोनों ही बालक के सामाजिक पक्ष को विकसित करने में सहयोग देते है।

सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कारकों में से अधिक महत्वपूर्ण अधोलिखित है।

1. वंशानुक्रम बालक के सामाजिक विकास पर वंशानुक्रम का कुछ सीमा तक प्रभाव पड़ता है। शिशु की पहली मुस्कान या उनका कोई विशिष्ट व्यवहार वंशानुक्रम से उत्पन्न होने वाला हो सकता है।

2 शारीरिक व मानसिक विकास स्वस्थ और अधिक विकसित मस्तिष्क वाले बालक का सामाजिक विकास अस्वस्थ और कम विकसित मस्तिष्क वाले बालक की अपेक्षा अधिक होता है।

3. संवेगात्मक विकास बालक के सामाजिक विकास का एक महत्वपूर्ण आधार उसका संवेगात्मक विकास है। क्रोध व ईर्ष्या करने वाला बालक दूसरे की घृणा का पात्र बन जाता है। उसके

विपरीत प्रेम और विनोद से परिपूर्ण बालक सभी को अपनी ओर आकर्षित करता है। संवेगात्मक और सामाजिक विकास साथ-साथ चलते है।

4. परिवार परिवार ही स्थान है, जहाँ सबसे पहले बालक का समाजीकरण होता है परिवार के बड़े लोगों का जैसा आचरण और व्यवहार होता है. बालक वैसा ही आचरण और व्यवहार करने का प्रयत्न करता है।

•पालन पोषण की विधि माता-पिता द्वारा बालक के पालन-पोषण की विधि उसके सामाजिक विकास पर बहुत गहरा प्रभाव डालती है. उदाहरणार्थ, समानता के आधार पर पाला जाने वाला बालक कहीं भी अपनी हीनता का अनुभव नहीं करता है और बहुत लाड़ प्यार से पाला जाने वाला बालक दूसरे बालकों से दूर रहना पसंद करता है।

6. आर्थिक स्थिति माता-पिता की आर्थिक स्थिति का बालक के सामाजिक विकास पर उचित या अनुचित प्रभाव पड़ता है, उदाहरणार्थ माता-पिता का बालक पड़ौस में रहते हैं, अच्छे व्यक्तियों से मिलते जुलते हैं और अच्छे विद्यालयों शिक्षा प्राप्त करते हैं। निर्धन माता-पिता की सन्तान होने के कारण उनकी सन्तानों को इस प्रकार की किसी भी सुविधा के कभी दर्शन नहीं होते हैं।

7. सामाजिक व्यवस्था सामाजिक व्यवस्था, बालक के सामाजिक विकास को एक निश्चित रूप और दिशा प्रदान करती है, समाज कार्य, आदर्श और प्रतिमान बालक के दृष्टिकोणों का निर्माण करते है। यही कारण है कि ग्राम और नगर, जनतंत्र और अधिनायकतंत्र में बालक का सामाजिक विकास विभिन्न प्रकार से होता है।

8. विद्यालय यदि विद्यालय का वातावरण जनतंत्रीय है, तो बालक का सामाजिक विकास अविराम गति से उत्तम रूप ग्रहण करता चला जाता है। इसके विपरीत यदि विद्यालय का वातावरण एकतन्त्रीय सिद्धान्तों के अनुसार दण्ड और दमन पर आधारित तो बालक का समाजिक विकास कुण्ठित हो जाता है।

9. शिक्षक बालक के सामाजिक विकास पर शिक्षक का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है यदि शिक्षक शिष्ट शांत और सहयोगी है, तो उसके छात्र भी उसी के समान व्यवहार करते हैं। योग्य शिक्षकों का सम्पर्क बालक के सामाजिक विकास पर निश्चित प्रभाव डालता है। वास्तविक सामाजिक ग्रहणशीलता और योग्यता वाले शिक्षकों से दैनिक सम्पर्क बालक के सामाजिक विकास में अतिशय योग देता है।

10. खेल कूद बालक के सामाजिक विकास में खेलकूद का विशेष स्थान है खेल द्वारा ही वह अपनी सामाजिक प्रवृत्तियों और सामाजिक व्यवहार का प्रदर्शन करता है, खेल द्वारा ही उसमें उन सामाजिक गुणों का विकास होता है।

11. समूह या टोली समूह या टोली के सदस्य के रूप में बालक इतना व्यवहार कुशल हो जाता कि समाज में प्रवेश करने के बाद उसे किसी प्रकार की कठिनाई का अनुभव नहीं होता है। 

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